जग में सचर-अचर जितने हैं, सारे कर्म निरत हैं। धुन है एक-न-एक सभी को, सबके निश्चित व्रत हैं। जीवनभर आतप सह वसुधा पर छाया करता है। तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।।
तुम्हे ढोना हे समय का भार - प्रेमजी प्रेम (Premji Prem)
तुम्हे ढोना है समय का भार, थोड़ी सी चाल तेज करो थोड़ी और तेज, और तेज यार, थोड़ी सी चाल तेज करो |
हाथ जो मिला था इन्कलाब के लिये, कुर्सी के लिए कैसे सलाम हो गया संतों ने उपदेश सारे देश को दिया, कैसे एक जात का पैगाम हो गया जो भी आया देश को बचाने के लिए, धर्म के दलालों का गुलाम हो गया हम तो हिंदू, मुस्लिम और सिक्ख हो गए, पर नानक का नाम बदना...
उड़ चल, हारिल, लिये हाथ में यही अकेला ओछा तिनका। ऊषा जाग उठी प्राची में-कैसी बाट, भरोसा किन का! शक्ति रहे तेरे हाथों में-छुट न जाय यह चाह सृजन की; शक्ति रहे तेरे हाथों में-रुक न जाय यह गति जीवन की!
ऊपर-ऊपर-ऊपर-ऊपर-बढ़ा चीरता जल दिड्मंडल अनथक पंखों की चोटों से नभ में एक मचा दे हलचल! तिनका? तेरे हाथों में है अमर एक रचना का साधन- तिनका? तेरे ...
नीड़ का निर्माण फिर-फिर - हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan)
नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्वान फिर-फिर! वह उठी आँधी कि नभ में छा गया सहसा अँधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भाँति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर!
कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएँगे, आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे।
हटने के नहीं पीछे, डर कर कभी जुल्मों से, तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे।
बेशस्त्र नहीं है हम, बल है हमें चरखे का, चरखे से जमीं को हम, ता चर्ख गुँजा देंगे। परवा नहीं कुछ दम की, गम की नहीं, मातम की, है जान हथेली पर, एक दम में गवाँ देंगे।