Jhoom Jhoom Mridu Garaj-Garaj Ghan Ghor
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर
- सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (Suryakant Tripathi 'Nirala')
महाकवि 'निराला' के जन्म-दिन पर उनकी कविता और हमारे दिलों में निराला जी को दुबारा जिन्दा करता हरप्रीत जी का संगीत और आवाज
झूम-झूम मृदु गरज-गरज घन घोर।
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
झर झर झर निर्झर-गिरि-सर में,
घर, मरु, तरु-मर्मर, सागर में,
सरित-तड़ित-गति-चकित पवन में,
मन में, विजन-गहन-कानन में,
आनन-आनन में, रव घोर-कठोर-
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!
अरे वर्ष के हर्ष!
बरस तू बरस-बरस रसधार!
पार ले चल तू मुझको,
बहा, दिखा मुझको भी निज
गर्जन-भैरव-संसार!
उथल-पुथल कर हृदय-
मचा हलचल-
चल रे चल-
मेरे पागल बादल!
धँसता दलदल
हँसता है नद खल्-खल्
बहता, कहता कुलकुल कलकल कलकल।
देख-देख नाचता हृदय
बहने को महा विकल-बेकल,
इस मरोर से- इसी शोर से-
सघन घोर गुरु गहन रोर से
मुझे गगन का दिखा सघन वह छोर!
राग अमर! अम्बर में भर निज रोर!