बढ़े चलो, बढ़े चलो
- सोहन लाल द्विवेदी (Sohan Lal Dwivedi)
न हाथ एक शस्त्र हो,
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
रहे समक्ष हिम-शिखर,
तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए जन बिखर,
रुको नहीं, झुको नहीं,
बढ़े चलो, बढ़े चलो
'So Na Saka'
- Ramanath Awasti
सो न सका कल याद तुम्हारी आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
मेरे बहुत चाहने पर भी नींद न मुझ तक आई
ज़हर भरी जादूगरनी-सी मुझको लगी जुन्हाई
मेरा मस्तक सहला कर बोली मुझसे पुरवाई
दूर कहीं दो आँखें भर-भर आई सारी रात
और पास ही बजी कहीं शहनाई सारी रात
बढ़े चलो
-द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी
वीर तुम बढ़े चलो
धीर तुम बढ़े चलो
साथ में ध्वजा रहे
बाल दल सजा रहे
ध्वज कभी झुके नहीं
दल कभी रुके नहीं
और भी दूँ
- रामावतार त्यागी (Ram Avtar Tyagi)
मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ
मॉं तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजाकर भाल में जब भी
कर दया स्वीकार लेना यह समर्पण
एक भी आँसू न कर बेकार
- रामावतार त्यागी (Ram Avtar Tyagi)
एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर मांगने आ जाए!
पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है
यह कहावत है, अमरवाणी नहीं है
और जिस के पास देने को न कुछ भी
एक भी ऐसा यहाँ प्राणी नहीं है
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
- ShivMangal Singh Suman (शिवमंगल सिंह सुमन)
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाऍंगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे ।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाऍंगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से ।
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
- गुलजार
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई
आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों
- गोपालदास "नीरज" (Gopaldas Neeraj)
छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |
स्रिष्टी से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ, किसने ढ़का था
उस पल तो अगम अटल जल भी कहाँ था
स्रिष्टी का कौन है कर्त्ता
कर्त्ता हैं वा अकर्त्ता
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अदर्ष्ट बना रहता
वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता, नहीं है पता
Hum Kare Rashtra Aaradhan
- from Chanakya Serial on Doordarshan TV
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन