Din Kuch Aise Gujarta Hai Koi

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
- गुलजार

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई
जैसे एहसान उतारता है कोई

आईना देख के तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

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Chhip Chhip Ashru Bahaane Waalon

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों
- गोपालदास "नीरज" (Gopaldas Neeraj)

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों
कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है |
सपना क्या है, नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों
कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है |

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Manjunath Shanmugam

Manjunath Shanmugam's life stands for truth and honesty.

He was born on February 23rd, 1978 in Karnatka. He finished his engineering from SJCE Mysore, and after that did his MBA from IIM Lucknow graduating in 2003. After finishing MBA he joined IOCL (Indian Oil Corporation Limited), and was a sales officer in Lakhimpur Khiri region of UP.

Lakhimpur Khiri is a known hotbed of petroleum ...

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Bharat Ek Khoj -- Srishtee Se Pehle

स्रिष्टी से पहले सत् नहीं था, असत् भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या, कहाँ, किसने ढ़का था
उस पल तो अगम अटल जल भी कहाँ था

स्रिष्टी का कौन है कर्त्ता
कर्त्ता हैं वा अकर्त्ता
ऊँचे आकाश में रहता
सदा अदर्ष्ट बना रहता
वही सचमुच में जानता, या नहीं भी जानता
है किसी को नहीं पता
नहीं पता, नहीं है पता

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Hum Kare Rashtra Aaradhan

Hum Kare Rashtra Aaradhan
- from Chanakya Serial on Doordarshan TV

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन

तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन

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Pushp Ki Abhilasha

पुष्प की अभिलाषा
- माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi)

चाह नहीं मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ

चाह नहीं, प्रेमी-माला में
बिंध प्यारी को ललचाऊँ

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Ek Aashirvaad

एक आशीर्वाद
- दुष्यन्त कुमार (Dushyant Kumar)

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
गाऐं।

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Aaj Phir Shuru Hua Jeevan

आज फिर शुरू हुआ जीवन
- रघुवीर सहाय

आज फिर शुरू हुआ जीवन
आज मैंने एक छोटी-सी सरल-सी कविता पढ़ी
आज मैंने सूरज को डूबते देर तक देखा

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तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार

तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार

लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार

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Tumhare Saath Rehkar

तुम्हारे साथ रहकर
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwar Dayal Saxena)

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

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