Pol Kholak Yantra - Ashok Chakradhar (अशोक चक्रधर)

This beautiful fictional poem by Ashok chakradhar is an account of poet's experiences with a mind reading instrument.

Watch the video to get rolling on the floor laughing!


The poem comes as a breath of fresh air in an age where gross and indecent comedy has taken the place of humour. The humble style of poet is also remarkable and appreciable.

Lyrics

(एच०जी० वेल्स ने तरह-तरह के यंत्रों की कल्पना की थी। ऐसे यंत्र जिनका अभी तक अविष्कार ही नहीं हुआ। उन्होंने ऐसे ही एक यंत्र के बारे में लिखा कि यदि वह यंत्र किसी के पास हो तो उसके सामने वाला आदमी क्या सोच रहा है, ये उसे पता लग जाएगा। .....और अब इसे हमारा सौभाग्य कहिए या दुर्भाग्य कि एक दिन जब हम अपनी श्रीमती जी के साथ बाज़ार जा रहे थे तब हमारा पांव किसी चीज़ से टकराया और हमने जब उस चीज़ को उठाया तो पाया कि ये तो वही यंत्र है।)

ठोकर खाकर हमने

जैसे ही यंत्र को उठाया,

मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई

कुछ घरघराया।

झटके से गरदन घुमाई,

पत्नी को देखा

अब यंत्र से

पत्नी की आवाज़ आई-

मैं तो भर पाई!

सड़क पर चलने तक का

तरीक़ा नहीं आता,

कोई भी मैनर

या सलीक़ा नहीं आता।

बीवी साथ है

यह तक भूल जाते हैं,

और भिखमंगे नदीदों की तरह

चीज़ें उठाते हैं।

इनसे तो

वो पूना वाला

इंजीनियर ही ठीक था,

जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता

इस तरह राह चलते

ठोकर तो न खाता।

हमने सोचा-

यंत्र ख़तरनाक है!

और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है

कि हमको मिला है,

और मिलते ही

पूना वाला गुल खिला है।



और भी देखते हैं

क्या-क्या गुल खिलते हैं?

अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।

तो हमने एक दोस्त का

दरवाज़ा खटखटाया

द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,

दिमाग़ में होने लगी आहट

कुछ शूं-शूं

कुछ घरघराहट।

यंत्र से आवाज़ आई-

अकेला ही आया है,

अपनी छप्पनछुरी,

गुलबदन को

नहीं लाया है।

प्रकट में बोला-

ओहो!

ये कुरता तो बड़ा फ़ैन्सी है!

और सब ठीक है?

मतलब, भाभीजी कैसी हैं?

हमने कहा-

भाभीजी?

या छप्पनछुरी गुलबदन?

वो बोला-

होश की दवा करो श्रीमन्‌

क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,

भाभीजी के लिए

कैसे-कैसे शब्दों का

प्रयोग करते हो?

हमने सोचा-

कैसा नट रहा है,

अपनी सोची हुई बातों से ही

हट रहा है।

सो फ़ैसला किया-

अब से बस सुन लिया करेंगे,

कोई भी अच्छी या बुरी

प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।



तो एक दिन बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में

एक लड़की बैठी थी

खिड़की के पास में।

लग रहा था

हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है

अपने मन में

कुछ और-ही-और

गुन रही है।

तो यंत्र को ऑन कर

हमने जो देखा,

खिंच गई हृदय पर

हर्ष की रेखा।

यंत्र से आवाज़ आई-

सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,

लंबे और होते तो

कितने स्मार्ट होते!



एक बार होटल में

बेयरा पांच रुपये बीस पैसे

वापस लाया

पांच का नोट हमने उठाया,

बीस पैसे टिप में डाले

यंत्र से आवाज़ आई-

चले आते हैं

मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,

टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।

हमने सोचा- ग़नीमत है

कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।



ख़ैर साहब!

इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं

कभी ज़हर तो कभी

अमृत के घूंट पिलाए हैं।



इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया

और मेरे कई कवि मित्र

एक साथ सोच रहे हैं -

अरे ये तो जम गया!

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